बड़ागांव में नहीं होता रावण का दहन, लंकापति की पूजा करते हैं ग्रामीण

बड़ागांव में नहीं होता रावण का दहन, लंकापति की पूजा करते हैं ग्रामीण

बागपत
रावण उर्फ बड़ागांव से लंकाधिपति राजा रावण को लेकर दिलचस्प किस्सा जुड़ा हुआ है। यहां ग्रामीण रावण का पुतला नहीं जलाते, बल्कि लंकाधिपति की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि यहां पूरी ताकत लगाने के बावजूद बलशाली रावण माता की मूर्ति को नहीं उठा पाया था।

बागपत के खेकड़ा क्षेत्र में रावण उर्फ बड़ागांव के लोग लंका के राजा रावण के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। रावण के सम्मान में यहां न तो रामलीला का आयोजन होता है और न ही पुतले का दहन किया जाता है। प्रसिद्ध मां मंशा देवी मंदिर के प्रांगण में रावण कुंड भी मौजूद है। कहा जाता है कि हिमालय से तपस्या के बाद लंका लौटते समय रावण ने जिस मार्ग का इस्तेमाल किया था, उसकी खोज की जा रही है। इतिहासकार वर्षों से इस पर शोध कर रहे हैं।

रावण उर्फ बड़ागांव का नाम लंकाधिपति रावण से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि हिमालय पर तपस्या करके मां मंशा देवी को उसने प्रसन्न कर लिया था। इसके बाद रावण ने मंशा देवी से उनके लंका में स्थापित होने का वरदान मांगा था। इस पर देवी ने शर्त रख दी कि मैं मूर्ति के रूप में तुम्हारे कंधों पर सवार होकर लंका चलूंगी, यदि रास्ते में मेरी मूर्ति का भूमि से स्पर्श हो गया तो मैं वहीं प्रतिष्ठित हो जाऊंगी। रास्ते में बागपत के बड़ागांव के पास रावण को लघुशंका की इच्छा हुई तो उसने यहां एक ग्वाले को मूर्ति को संभालने के लिए दे दी।

असल में ग्वाला स्वयं भगवान विष्णु थे, उन्होने मूर्ति को जमीन पर रख दिया। रावण लौटा तो मूर्ति को उठाने का प्रयास किया लेकिन रावण के लाख प्रयासों के बाद भी देवी की मूर्ति भूमि से न उठ सकी। इसके बाद रावण मां को प्रणाम कर लंका की ओर प्रस्थान कर गया। कहा जाता है कि देवी मां बड़ागांव में प्राचीन मंशा देवी मंदिर में विराजमान हैं।

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कहा जाता है तभी से बडागांव का नाम भी रावण पड़ गया। मंशा देवी मंदिर में विष्णु की प्राचीन मूर्ति भी मौजूद है, जिसे इतिहासकार आठवीं शताब्दी की बताते हैं। ग्राम प्रधान दिनेश त्यागी, प्रदीप त्यागी, राजपाल त्यागी, आदि का कहना है कि भगवान राम में ग्रामीणों की पूरी आस्था है, लेकिन महाज्ञानी रावण भी ग्रामीणों के दिल में बसे हैं। मंशा देवी मंदिर परिसर में उनके नाम से रावण कुंड मौजूद है। गांव में वर्षों से रामलीला या रावण दहन नहीं होता।

लंकापति के नाम पर बड़ागांव रावण
दशानन बुराइयों का प्रतीक है। सीता हरण के बाद श्रीराम ने लंकेश को मार गिराया। लंकापति का नाम आते ही भले ही लोग घृणा करें, लेकिन बागपत जनपद के बडागांव को रावण के नाम से जाना जाता है। बड़ा गांव उर्फ रावण में दशहरा तो मनाया जाता है। लेकिन कभी रावण का पुतला नहीं जलाते। असल में हिमालय से लंका जाते वक्त रावण मंशा देवी की मूर्ति लेकर बड़ा गांव रुके थे। हालांकि देवी यहीं स्थापित हो गईं।
ग्रामीण कहते हैं कि लंकापति की वजह से ही मंशा देवी उनके गांव में स्थापित हुई। इस कारण यहां कभी उनके पुतले का दहन नहीं करने की परंपरा है। खेकड़ा के पास बसे रावण उर्फ बड़ागांव को जैन मंदिर और मंशा देवी मंदिर की वजह से भी जाना जाता है। यहां दूरदराज से श्रद्धालुओं की आवाजाही रहती है।

ग्राम प्रधान ने बताया कि रावण की वजह से उनके गांव में मंशा देवी का मंदिर बना और मूर्ति की स्थापना हो सकी। यही वजह है कि यहां कभी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। ग्रामीण कहते हैं कि दशहरा पूजा पाठ कर मनाते हैं, लेकिन कभी दशानन का पुतला नहीं जलाते।

रावण कुंड भी, जिसका होगा जीर्णाेद्धार
गांव के रकबे में रावण कुंड के नाम से भी तालाब है। इसका जीर्णाेद्वार कराने का प्रयास किया जा रहा है।

रावण की मूर्ति कराएंगे स्थापित
ग्रामीण कहते हैं कि रावण में लाख बुराईयां थी, लेकिन उनके नाम से गांव को पहचान मिली। वह देवी और शिव के पक्के भक्त है। गांव में रावण की मूर्ति स्थापित करने का विचार है, इस पर जल्द ही ग्रामीणों की बैठक बुलाई जाएगी।

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